मनीकर्ण तीर्थ की सुखद यात्रा

मनीकर्ण तीर्थ की सुखद यात्रा
  • मनीकर्ण तीर्थ की सुखद यात्रा

ललित ठाकुर

मणिकर्ण हिमाचल प्रदेश में कुल्लू जिले के भुंतर से उत्तर-पश्चिम में पार्वती घाटी में ब्यास और पार्वती नदियों के मध्य बसा एक तीर्थस्थल व पर्यटन नगरी है। यह समुद्र तल से 1760 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है और कुल्लू से इसकी दूरी लगभग 45 कि.मी. और मनाली से करीब 80 किलोमीटर है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए भुंतर में छोटे विमानों के लिए हवाई अड्डा भी है।खौलते गर्म पानी के चश्मे मणिकर्ण का सबसे अचरज भरा और विशिष्ट आकर्षण हैं। देश-विदेश के लाखों प्रकृति प्रेमी पर्यटक यहां आते हैं, विशेष रूप चर्म रोग या गठिया जैसे रोगों से परेशान पर्यटक, जो यहां आकर स्वास्थ्य लाभ पाते हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां उपलब्ध गंधकयुक्त गर्म पानी में कुछ दिन स्नान करने से ये बीमारियां ठीक हो जाती हैं।यहां मंदिर व गुरुद्वारे के विशाल भवनों से लगती हुई बहती है पार्वती नदी, जिसका वेग रोमांचित करने वाला होता है। नदी का पानी बर्फ के समान ठंडा है, जिसके दाहिनी ओर गर्म व उबलते पानी के चश्मे हैं। इस ठंडे-उबलते प्राकृतिक संतुलन ने वैज्ञानिकों को लंबे समय से चकित कर रखा है, जिनका कहना है कि यहां के पानी में रेडियम है।

    गर्म पानी में लंगर के लिए चावल बनाए जाते है

    पर्यटकों के लिए सफेद कपड़े की पोटलियों में चावल डालकर चश्मों में उबालकर बेचे जाते हैं। कहते हैं कि इस पानी से चाय बनाई जाए तो आम पानी की चाय से आधी चीनी डालकर भी दो गुना मीठी हो जाती है।मणिकर्ण साहिब गुरुद्वारा किसी चमत्कारी तीर्थस्थल से कम नहीं है। आप इस बात को जान कर हैरत में पड़ जाएंगे कि इस गुरुद्वारे का पानी बर्फीली ठण्ड में भी उबलता रहता है। गुरुद्वारा मणिकर्ण साहिब गुरु नानक देव जी की यहां की यात्रा की स्मृति में बना है।

    कहा जाता है कि यह पहली जगह है, जहां गुरु नानक देव जी ने ध्यान लगाया था और बड़े-बड़े चमत्कार किए थे। उनके शिष्य मर्दाना को भूख लगी थी लेकिन भोजन नहीं था। इसलिए गुरु नानक जी ने उसको लंगर के लिए भोजन एकत्र करने के लिए भेजा। लोगों ने रोटियां बनाने के लिए आटा दान में दिया। सामग्री होने के बावजूद वे आग न होने के कारण भोजन पकाने में असमर्थ थे। इसके बाद गुरु नानक देव जी ने मर्दाना को एक पत्थर उठाने के लिए कहा और ऐसा करते ही वहां से गर्म पानी का एक चश्मा निकल आया। इसी चश्मेे के उबलते पानी का इस्तेमाल आज भी गुरुद्वारा में रोटी, चावल, दाल आदि पकाने के लिए किया जाता है।कुल्लू स्थित यह एक प्रमुख धार्मिक स्थल है, जो देवता रघुनाथ जी को समर्पित है।

    माना जाता है कि अश्वमेघ यज्ञ के दौरान भगवान राम की जो मूर्ति बनी और उसका पूजन हुआ, यह वही रघुनाथ हैं। अंगूठे के आकार की छोटी-सी प्रतिमा, जिन्हें कुल्लू के राजा जगत सिंह 1651 में अयोध्या से लाए और कथित तौर पर इससे उनकी लाईलाज बीमारी ठीक हो गई थी। इस मंदिर का निर्माण 1650 ई. में किया गया था।

    स्थानीय लोगों का मानना है कि इस तीर्थ स्थल के इष्टदेव घाटी के रक्षक हैं।हिंदू मान्यताओं के अनुसार यहां का नाम इस घाटी में देवी पार्वती के कान (कर्ण) की बाली (मणि) खो जाने से संबंधित है। भगवान शिव और देवी पार्वती इस स्थान की सुंदरता पर मोहित हो गए और उन्होंने 1100 सालों तक यहां रह कर तपस्या की थी। मां पार्वती जब नहा रही थीं, तब उनके कानों की बाली में से एक मणि पानी में जा गिरी। भगवान शिव ने अपने गणों से मणि ढूंढने को कहा लेकिन वह नहीं मिली। इससे भगवान शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपना तीसरा नेत्र खोल दिया, जिससे माता नैनादेवी नामक शक्ति उत्पन्न हुई।माता नैना देवी ने भगवान शिव को बताया कि उनकी मणि पाताल में शेषनाग के पास है।

    देवताओं द्वारा प्रार्थना करने पर शेषनाग ने मणि वापस कर दी लेकिन वह इतने नाराज हुए कि उन्होंने जोर की फुंकार भरी जिससे इस जगह पर गर्म जल की धारा फूट पड़ी। तभी से इस जगह का नाम मणिकर्ण पड़ गया। खीरगंगा मणिकर्ण से लगभग 22 कि.मी. दूर स्थित हैै। यहां के इलाके घने जंगल, कैंपिंग, नेचर वॉकिंग और माऊंटेन क्लाइंबिंग व ट्रैकिंग के लिए बेहद खास हैं। हरे-भरे जंगलों के बीच से सूर्यास्त और ट्रैकिंग के अविश्वसनीय दृश्यों का अनुभव बेहद खास होता है।

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