आस्था, परंपरा और मनोरंजन का प्रतीक हालड़ा उत्सव-

आस्था, परंपरा और मनोरंजन का प्रतीक हालड़ा उत्सव-

आस्था, परंपरा और मनोरंजन का प्रतीक हालड़ा उत्सव –

तिनन वैली में कल बड़े धूमधाम से मनाया गया हालडा पर्व –

लाहुल स्पीति,खबर आई

लाहुल घाटी के तिनन वैली में कल हालड़ा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। इस पर्व में लकड़ी की माशालों को जलाकर एक निर्धारित स्थल पर ले जाया जाता है इसे स्थानीय भाषा में हालडा कहते हैं। इस दिन विभिन्न प्रकार के पकवान व भोजन बनाए जाते हैं। यह परंपरा सैकड़ों सालों से चली आ रही है स्थानीय बुजुर्गों का कहना है कि बुरी शक्तियां एवं बुराई को हालडा को जलाकर दूर किया जाता है।

जलते हालडो का मिलन करते हुए

गौरतलब है कि हालडा के रात्रि सभी ग्रामीण अपने अपने घरों में अपने अपने इष्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं उसके उपरांत निर्धारित समय के अनुसार हालडा को जलाकर एक निर्धारित स्थान पर ले जाते हैं और सभी हालडो (मशालों ) को एक साथ रख कर पारंपरिक वेशभूषा में सजे पुरुष उस जलते हालडो (मशालो ) के इर्द-गिर्द पारंपरिक नृत्य भी करते हैं। कई सालों पहले तक यह भी एक परंपरा थी कि हालडा फेंकने के  लगभग तीन दिनों तक घरों से बाहर नहीं निकलते थे, यह माना जाता था कि कहीं बुराई शक्तियां देख ना ले इसलिए सभी अपने अपने घरों में ही रहा करते थे। अब कई जगहों पर परंपराओं को बदला गया है, लेकिन कई जगह अभी भी परंपराओं को जिंदा रखा गया है।

हालडा पर्व में बनाया जाने वाला बराजा, जिस की हर दिन पूजा की जाती है।

हालडा पर्व की रात्रि  देवी देवताओं का प्रतीक मानकर बराज़ा (राजा बलि) बनाया जाता है जिसकी हर दिन पूजा की जाती है। इस पर्व में उम्र से छोटे व्यक्ति अपनों से बड़े बुजुर्गों के पास जूब (योरा) देने जाते है। हालडा पर्व आस्था, परंपरा, खाने पीने वाला और मौज-मस्ती वाला त्यौहार है। यह पर्व लगभग एक महीने तक चलता है।

 

 

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