आज मनाया जाएगा तीनन वैली में मशालों का त्यौहार हालडा 

आज मनाया जाएगा तीनन वैली में मशालों का त्यौहार हालडा 

आज मनाया जाएगा तीनन वैली में मशालों का त्यौहार हालडा

लाहुल स्पीति,खबर आई

जनजातीय जिला लाहुल स्पीति अनेकों त्योहारों एवं पर्वों के लिए प्रसिद्ध है। यहां पर अलग-अलग घाटियों में अलग-अलग पर्व और उत्सव मनाया जाते हैं। इन्हीं उत्सवो में से एक हलड़ा उत्सव भी है। यह यह उत्सव अलग-अलग घाटियों में अलग-अलग समय में मनाया जाता है।
मशालों के इस त्यौहार को हालडा कहते है। इस पर्व का आज लाहुल के तीनन घाटी में आग़ाज़ हो रहा है। यह पर्व कई दिनों तक चलेगा। हलडा नव वर्ष के आग़ाज़ होने पर घरों से भूत प्रेतों व नकारात्मक चीज़ों को मशाल जला कर बाहर निकाला जाता है। तीनन घाटी में यह त्यौहार रविवार या मंगलवार के दिन मनाया जाता है। हलडा पर्व की तिथि धार्मिक ग्रंथों के अनुसार तय की जाती है। इस दिन घरों में हर पुरुष के नाम से लकड़ियो को फाड़ कर एक एक मशाल तैयार किए जाते हैं। इसके इलावा अपने अपने इष्ट देवी – देवताओं के नाम से, पशुधन के नाम से हालडा तैयार किया जाता है।

इस तरह से बनाए जाते है हलडा (मशाल )

मनिंग गोंपा के मुख्य लामा श्री अशोक मेमें के अनुसार इस वर्ष इस वर्ष तिनन हालडा 29 जनवरी, रविवार को मनाना निश्चित हुआ है, हलडा फाडने का समय सुबह 10 बजे, पूर्व और दक्षिण दिशा की बीच मुंह करके फाडे, हो सके तो फामा छ़ांगी यानि जिस व्यक्ति के माता पिता ज़िंदा हों, उसी को ही हलडा फाडने दें, हलडा फेंकने का समय रात्रि 11 बजे रहेगा। रात्रि निश्चित समय पर हर घर से मशाल जला कर हालडो हालडो की उद्घोष कहते हुए सभी पुरुष पारंपरिक वस्त्रों में सफ़ेद चादर पहन कर एक निश्चित स्थान पर पहुँचते है और सभी मशालों को बर्फ़ पर टिका कर जलाया जाता है, तत्पश्चात् सभी लोग चादरों में बर्फ़ समेट कर घर पहुँचते हैं। इस अवसर पर रीति रिवाजों का निर्वहन करते हुए उन्हें दरवाज़े पर ही रोक दिया जाता है। घर के सदस्य पूछते हैं कि क्या ले कर आये हैं तो मशाल फेंक कर आये पुरुष चादर में समेटे बर्फ़ दिखाते हुए सौग़ात साथ ले कर आने की बात करते हैं। फिर घर में घी और सत्तू मिला कर बलराज बनाया जाता है जिसे पूजा स्थल में रखा जाता है जिसे त्यौहार ख़त्म होने के पश्चात् खाया जाता है।

हलडा पर्व के दौरान देवी देवता की इस तरह कलाकृति दीवारों में बनाई जाती है

मंगल मनेपा जी कहते है हालडा के अगले दिन कुसिल मनाया जाता है जिसमे नौ प्रकार के पकवान बना कर देवी देवताओं को भोग चढ़ाया जाता है। कुसिल के अगले दिन नमदोई मनाया जाता है और नमदोई के पश्चात शशुम मनाया जाता है और उसके बाद गुमचेन का त्यौहार मनाया जाता है। और अंत में सभी गोंधला गाँव के समस्त लोग गोंधला ठाकुर के घर एकत्रित होते हैं जिसे क्यारपा ड्रोन के नाम से जाना जाता है जहाँ सभी एक दूसरे को फ़ूल दे कर नव शुभकामनाएँ देते हैं और भोज की व्यवस्था व नाच गा कर नव वर्ष का स्वागत करते हैं जबकि तीनन घाटी के अन्य गाँव में रीति रिवाज अलग रहते हैं। कुछ दिनाे पश्चात् गाँव में ड्रोन जिसमे पूरे गाँव के लोग एक एक दिन हर एक घर में एकत्रित होते हैं और वहां भोज की व्यवस्था की जाती है और रात भर नाच गान होता है इस तरह यह पर्व कई दिनों तक चलता है।

 

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