लाहुल स्पीति (खबर आई संवाद सूत्र)
चंद्रा वैली के रंगलो घाटी में कल हालडा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया।
लाहुल स्पीति के चंद्रा वैली के रंगलो घाटी में कल हालडा उत्सव मनाया गया। आज के दिन गांव के सभी पुरुष पारंपारिक पोशाकों में रात के तय समय में लकड़ी की मशाले जलाकर निश्चित स्थानों में लाया जाता है। सभी पारंपरिक पोशाकों में पुरुष मशालों के इर्द-गिर्द पारंपरिक नृत्य भी करते हुए हावड़ा उत्सव के रूप में मनाते हैं। इस इस घाटी में हालडा के दूसरे दिन (कुंसिल) के दिन ग्रामीण न अजनबी से मुलाकात करते है और न ही किसी का नाम लेते हैं। सिस्सू पंचायत के अंतर्गत रंगलों घाटी में रोपसंग से तेलिंग तक दर्जनों गावों में हलडो और पूर्णा उत्सव धूमधाम से मनाया गया। हलड़ो के दिन सभी गांववासी देवलोक गए देवताओं का आह्वान करते हैं,ताकि पर्व का आगाज़ किया जा सके। इस अनुष्ठान में प्रत्येक घर से एक एक पुरुष पारंपरिक परिधान पहने,अपने साथ मक्खन का टुकड़ा लाते है और सामूहिक रूप से उस मक्खन को भेडू का शक्ल दिया जाता है,जो राजा घेपन को अर्पित किया जाता है। उस के बाद हर पुरुष सफेद पगड़ी ओर चादर पहन कर इष्ट देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते है। सिस्सू पंचायत में 4 प्रकार का हालड़ा सद हालड़ा (देवता हालडा), जिदग हालड़ा, मी हालड़ा, रामो हालड़ा निकाला जाता है और कुस किप्पो लज़ी यानी आनंदपूर्वक त्योहार मनाएं बोला जाता है। सद हालड़ा को देवता के स्थान,मी हालड़ा को नाले की तरफ भुगत के साथ थोश थोश पुकार कर फेंका जाता है, ताकि गाँव का बुरी आत्माओं से रक्षा हो सके। रात को पारंपरिक स्वादिष्ट भोजन परोसें जाते हैं।सब से पहले राजा जिदग को तंदूर में राजा बलि को कांसे की थाली में,तत्पश्चात घर के सदस्यों को परोसा जाता है। हलडो के दूसरे दिन घाटी में कुंसिल आरंभ हो जाता है,इस दिन ग्रामीण कोई भी घरों से बाहर नही निकलते है और न ही किसी अजनबी से मुलाकात करते हैं।कुंसिल के बाद नमदोई, शशुम ओर खसेद फिर महादानी राजा बलि से बरदान मांगने के पश्चात बलराज को उतार दिया जाता है।