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कैंसर एवं हृदयघात जैसे जानलेवा बीमारियों का कवच है, बुरांश का फूल

कैंसर एवं हृदयघात जैसे जानलेवा बीमारियों का कवच है, बुरांश का फूल

कैंसर एवं हृदयघात जैसे जानलेवा बीमारियों का कवच है, बुरांश का फूल –

मंडी, खबर आई ब्यूरो

हिमाचल प्रदेश के विभिन्न घाटियों में पाए जाने वाला बुरांश फूल की लालिमा इन दिनों घाटियों में खूब देखने को मिल रही है। अनेकों औषधियों से भरपूर जंगली फूल बुरांश हिमाचल, उत्तराखंड के साथ-साथ नागालैंड प्रदेश का राजकीय पुष्प भी है। एनवायर्नमेंटल इनफार्मेशन सिस्टम ईएनवीआईएस रिसोर्स पार्टनर ऑन बायोडायवर्सिटी के मुताबिक बुरांश का वनस्पतिक नाम रोडोडेंड्रोन अर्बोरियम एसएम है। बुरांश को अंग्रेज़ी में रोडोडेंड्रोन और संस्कृत में कुर्वाक के नाम से भी जाना जाता है। रोडोडेंड्रोन दो ग्रीक शब्दों से लिया गया है रोड का अर्थ है गुलाबी लाल और डेंड्रोन का अर्थ है पेड़ में खिलने वाले गुलाबी लाल फूलों से है। पर्वतीय क्षेत्रों में बुरांश की लगभग 300 प्रजातियां पाई जाती हैं। मार्च-अप्रैल के महीनों में बुरांश के फूलने का समय है। उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्रों में बुरांश की आर. आर्पोरियम नामक प्रजाति पाई जाती है। यह प्रजाति कुमाऊं और गढ़वाल के हिमालयी क्षेत्र में बहुत अधिक पाई जाती है।

बुरांश एक सदाबहार पेड़ है जो समुद्र तल से 1500-3600 मीटर की ऊंचाई पर उगता है, यह 20 मीटर तक ऊंचा होता है, जिसमें खुरदरी और गुलाबी भूरी छाल होती है। पत्तियां शाखाओं के सिरे की ओर भरी हुई, तिरछी-लांसोलेट और सिरों पर संकुचित, 7.5 से 15 × 2.5 – 5 सेमी, ऊपर चमकदार, नीचे सफेद या जंग के सामान भूरे रंग के होते हैं। फूल कई हिस्सों में, बड़े, गोलाकार, गहरे लाल या गुलाबी रंग के होते हैं। बुरांश मूल रूप से भारतीय है। यह पूरे हिमालयी इलाकों में फैला हुआ है। यह भूटान, चीन, नेपाल, पाकिस्तान, थाईलैंड, नागालैंड और श्रीलंका में भी पाया जाता है।

पारंपरिक उपयोग के तौर पर बुरांश के फूल की पंखुड़ियों का उपयोग खाने में किया जाता है। इसका स्वाद खट्टा-मीठा होता है। लगभग सभी धार्मिक कार्यों में देवताओं को बुरांश के फूल चढ़ाए जाते हैं। आईयूसीएन की द रेड लिस्ट ऑफ रोडोडेंड्रोन के अनुसार बुरांश अम्लीय मिट्टी पर उच्च वर्षा और उच्च आर्द्रता वाले क्षेत्रों में उगते हैं।

औषधीय गुणों से भरपूर बुरांश

बुरांश का फूल सुंदर होने के साथ साथ अपने औषधीय गुणों के लिए भी जाना जाता है। बुरांश के फूलों में कई प्रकार के औषधीय गुण विद्यमान होते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि बुरांश के फूल जहां दिल व कैंसर जैसे खतरनाक बीमारियों की दवा बनाने में काम आता है।

बनाने में काम आता है। वहीं जैम, जूस, चटनी व अचार बनाने में भी प्रयोग किया जाता है। बुरांश के फूलों से बना शरबत हृदय रोगियों के लिए अत्यंत लाभकारी माना जाता है। इसकी पंखुड़ियों का उपयोग मांसपेशियों में दर्द, सिरदर्द और बुखार को दूर करने के लिए किया जाता है। यह श्वसन संबंधी विकास दूर करता है। पेड़ की छाल का उपयोग पाचन और श्वसन सबंधी विकारों को ठीक करने के लिए किया जाता है।

मंडी जिला के आयुर्वेदिक स्वास्थ्य केंद्र उरला की प्रभारी ने जानकारी देते हुए बताया कि बुरांश के फूल की चटनी व स्कवैश के इस्तेमाल से एनीमिया से बचाव यानी शरीर में खून की कमी पूरी होती है। हड्डियों को मजबूत बनाए रखने में सहायता मिलती है। शरीर में जलन को शांत करने में बुरांश बेहद फायदेमंद है। डायबिटीज रोगियों के लिए भी बुरांश के फूल की चटनी और स्क्वैश फायदेमंद है। इससे शारीरिक कमजोरी भी दूर होती है है।

बुरांश शरीर में कोरोना संक्रमण को फैलने से रोकता है

कोरोना काल में वैज्ञानिकों ने बुरांश के ऊपर भी कोरोना दवाई बनाने के प्रयोग किये जिसमें भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मंडी और इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेटिक इंजीनियरिंग एंड बायोटेक्नोलॉजी (आईसीजीईबी) के शोधकर्ताओं ने हिमालय की पहाड़ियों में पाए जाने वाले बुरांश के पेड़ से कोरोना का इलाज ढूंढने का दावा किया है। भविष्य में इससे कोरोना की दवा बनाई जा सकती है। बुरांश के फूल में पाया जाने वाला केमिकल संक्रमण को मात देने में अहम भूमिका निभा सकता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार बुरांश के फाइटोकेमिकल्स शरीर में दो तरह से काम करते हैं। सबसे पहले ये कोरोना में पाए जाने वाले एक एंजाइम से जुड़ते हैं, जो वायरस को खुद की नकल करने में मदद करता है। इसके अलावा ये हमारे शरीर में पाए जाने वाले एसीई-2 एंजाइम से भी बंधते हैं। एसीई-2 एंजाइम के जरिए ही वायरस हमारे शरीर में प्रवेश करता है। फाइटोकेमिकल की इस जुड़ने की प्रक्रिया से कोरोना वायरस हमारे शरीर की कोशिकाओं को संक्रमित नहीं कर पाता और संक्रमण का खतरा टल जाता है।

रोजगार का बन सकता है साधन

प्रदेश क्षेत्र के भू-भाग पर बुरांश के रूप में रोजगार का एक बड़ा खजाना छिपा है। जिला मंडी व कुल्लू के जंगलों में बुरांश के फूल काफी मात्र में पाए जाते है, स्थानीय लोग बुरांश के फूलों को 80  से 150  रूपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बाजार में बेचते है। इस खजाने को तराशने के लिए सरकार की ओर से कोई कारगर प्रयास नहीं किया गया। सरकार यदि बुरांश के दोहन के लिए कोई ठोस कदम उठाती है तो जहां लोगों को रोजगार के अवसर प्रदान होंगे। वहीं, सरकारी खजाने में भी इजाफा हो सकता है।

 

 

 हिमालयी राज्यों में फैले हैं बुरांश के जंगल

हिमालयी राज्यों में बसंत ऋतु के आने पर पहाड़ो की खूबसूरती कई गुना बढ़ जाती है। माघ, फागुन, चैत्र, बैशाख के महीनों में यहां मौसमी फलों, फूलों आदि की प्रचूरता बढ़ जाती है। इन्हीं महीनों में खिलने वाला मौसमी फूल बुरांश है। मार्च और अप्रैल के महीनों में पहाड़ इसके फूलों के रंग से सराबोर हो जाते हैं।

इसके अलावा बुरांश के फूलों से गुलजार हिमाचल प्रदेश के कई घाटियाँ  इन दिनों बुरांश के फूलों से गुलजार है। जिससे यहां के जंगलों का सौंदर्य निखर गया है। बुरांश का फूल न केवल सुंदरता की दृष्टि से अच्छा होता है, बल्कि इसमें कई प्रकार के औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। देश विदेश के पर्यटक बुरांश के फूल की लालिमा देखकर रोमांचित हो रहे हैं।

बुरांश की लकड़ी का आर्थिक महत्व

बुरांश के पेड़ की लकड़ी का उपयोग ईंधन के रूप में और लकड़ी का कोयला बनाने के लिए किया जाता है। लकड़ी का उपयोग टूल-हैंडल्स, बॉक्स, पैक-सैडल्स, पोस्ट, प्लाईवुड बनाने के लिए किया जाता है।

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